रविवार, 31 अक्तूबर 2010

सरकारी जमीन में सेंध

बाबुओं- नेताओं को सरकारी जमीन में सेंध लगाकर अपने की पर्ची डालने में महारत हासिल है। वे कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते। अगर चूक हो गई तो, सिपहसालारों की शामत ही शामत। बानगी देखें। मुंबई के कोलाबा इलाके में स्थित आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के एक अपार्टमेंट में सेना के 2 पूर्व जनरल, कई नौकरशाह और नेताओं को फ्लैट अलॉट किए गए हैं परंतु यहां कई नियमों के साथ खिलवाड़ किया गया है। यह जमीन सेना के कब्जे में कई सालों से थी और इस जमीन के मालिकाना हक के बारे में सेना ने रक्षा मंत्रालय को धोखे में रखा। रक्षा मंत्रालय ने भी 2003 में एक सवाल के दौरान संसद को गुमराह किया। यही नहीं, बिल्डिंग के जरिए कोस्टल रेग्युलेशन जोन नियम का भी उल्लंघन किया गया है। मामला सामने आते ही हर बार की तरह लीपा-पोती काम भी शुरू हो गया है। हाउसिंग सोसाइटी ने फ्लैट ऑनर्स का नाम बताने से इनकार कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने भी यह कहा है कि उसके पास इस बिल्डिंग का कोई विवरण नहीं हैं। फिर कहने का असली कारण? बिल्डरों की जो फौज जमीन पर घरों का सपना दिखाकर मध्यम तबके के जीवन में खटास ला चुकी है, अब वह रइसों के सपनों को हर कीमत पर हकीकत का जामा पहनाने में जुटा है। जिस तरह सेज के लिये जमीन हथियाने का सिलसिला जमीन पर देखने में या और सैकड़ों सेज परियोजना को लाइसेंस मिलता चला गया, मनमाफिक कीमत दी जा रही है। लेकिन इस मनमाफिक रकम की उम्र किसानी और जमीन मालिक होने का हक खत्म कर मजदूर में तब्दील करती जा रही है। सैकड़ों कॉटेज की रखवाली वही परिवार बतौर नौकर कर रहे हैं, जिस जमीन के कभी वो मालिक होते थे। आज चारों ओर जो झाडिय़ां उगी हुई हैं वे कल अनमोल हो जाएंगी। कीमत इतनी अधिक होगी कि आम आदमी साफ हवा और तालाब का पानी पाने के लिए तरस कर रह जाएगा। यहअसली खेल है। बहुत सारे छोटे बड़े नामी-बेनामी व्यापारी भी हैं जो अनाप-शनाप तरीकों से जमीन हथियाने में लगे हुए हैं। इस पवित्र कर्म में सरकारें उनको पूरा मदद कर रही हैं। रियल एस्टेट डेवलपर हरियाली की सबसे ज्यादा कीमत वसूलते हैं। लाखों-करोड़ों अदा करने पर हरियाली मिलती है। पिछले एक दशक में समय ने अपने साथ बहुत कुछ बदल दिया है बेहतर ग्रामीण और शहरी बुनियादी ढांचे की आवश्यकता में वृद्धि हुई है, लोगों की आकांक्षाओं में भी वृद्धि हुई है । लेकिन देश की राजनैतिक प्रणाली इन बदलावों के साथ अपने आप को विकसित करने में असफल रही है । आज के राजनीतिक नेतृत्व से यह अपेक्षित है की वह आम आदमी के दु:ख दर्द और समस्याओं को समझे और एक ऐसा सक्षम तंत्र विकसित करे जो इस समस्याओं को न सिर्फ समझे बल्कि इनका कुशलतापूर्वक समुचित समाधान कर सके। आज आम आदमी विभिन्न प्रकार की समस्याओं से ग्रसित है फिर चाहे वो समस्या पानी की हो, बिजली की, खस्ताहाल सड़कों की, सूखाग्रस्त किसानों की, बेरोजगारी की, गुंडे -मवालियों की या फिर महंगाई की । आज हम एक ऐसे समाज में जी रहें हैं जो भ्रष्टाचार और भय के बादलों से घिरा हुआ है । इन सब के बीच आम आदमी की आवाज कहीं खो गयी है। मुंबई के कोलाबा में जो कुछ हुआ अथवा हो रहा है उसे बानगी के रूप में देखें तो देश के कई भागों के दृश्य नजर के सामने होंगे। किसी एक उदाहरण को पेश नहीं किया जा सकता, जिसमें किसी गरीब को सरकारी जमीन पर हल चलाते देखा जा सके। इसलिए कि उसे डर है। यह काम तो वही कर सकता है, जो निडर है। गरीब किसी हवलदार का सामना नहीं कर सकता, अदालत के नाम पर तो उसे यूं ही पसीने छूटते हैं। उनसे सवाल पूछा जाना चाहिए जो सवाल पूछने पहुंचे अधिकारियों से उलट सवाल कर डालते हैं। देश में जमीन चोरों का खाका साफ हो जाएगा।

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