रविवार, 31 अक्टूबर 2010
राजनीति में झंडू बाम
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने कोल्हापुर की एक सभा में ये घोषणा करके फिल्म दबंग के लोकप्रिय गाने के बोल मैं झंडू बाम हो गई, डार्लिंग तेरे लिए को नए अर्थ दे दिए हैं। झंडू बाम पर कमर लचकाने वाली मल्लिका अरोड़ा खान ने इस प्रकार के आयटम गानों पर थिरकने से भले ही तौबा कर ली हो, लेकिन इसे जुमला -ए-आम बनाने वालों को कोई तौबा नहीं। पहले तो यह समझना होगा कि इस जुमले को उगल वे क्या कहना चाहते हैं। वैसे इसका भान कटु-व्यंग्य ही प्रतीत होता है। चव्हाण ने कहा कि पश्चिम महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन का जो (कांग्रेस के लिए) सिरदर्द है, उसे दूर करने के लिए हमारे मंत्री पतंगराव कदम और हर्षवर्धन पाटील झंडू बाम साबित होंगे। मुख्यमंत्री कोल्हापुर महानगरपालिका चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी द्वारा आयोजित सभा को संबोधित कर रहे थे। मतलब साफ है कि युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए उन्हीं की बोली बोलते हुए सीएम ने नई पीढ़ी के मुहावरों का जमकर उपयोग किया। पतंगराव और हर्षवर्धन को कांग्रेस पार्टी की तरफ से कोल्हापुर की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इनमें से मंत्री पतंगराव मसखरेपन और बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। आम तौर पर फिल्मी गानों की टॉप टेन के हिसाब से रेटिंग की जाती है। सीएम ने यह जनप्रिय शब्दावली अपनी बात पहुंचाने के लिए उधार ले ली। उन्होंने कहा उज्ज्वल भविष्य और विकास के लिए काम करने की धमक कांग्रेस पार्टी में है। कोल्हापुर की सत्ता हमारे हाथ में दीजिए, इसे टॉप टेन में लाकर दिखा देंगे। माथे पर थोड़ा बल दें। शुरुआती क्षणों में देश भर में सिनेमा हालों की खिड़कियां तुड़वा रही मुन्नी जब नसीबन आंटी का मुखड़ा चुरा कर उस पर झंडू बाम लगाएगी तो बदनाम होगी ही। अब अतीत को खंगालें। गत 26 नवम्बर को जब पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने मुम्बई में हमला किया था, और उसके नतीजे में कर्तव्यनिष्ठ, जिम्मेदार और सक्रिय सूट-बूट वाले विलासराव देशमुख अपने बेटे रितेश और रामगोपाल वर्मा को साथ लेकर ताज होटल में तफरीह करने गये थे, उसके बाद शर्म के मारे उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था और अचानक अशोक चव्हाण की लाटरी लग गई थी। इसके बाद तो मुड़कर देखने की जरूरत ही नहीं हुई। बुलंद हौंसलों की तस्वीर कुछ और ही होती है। लेकिन अपने पीछे यह कुछ राज भी छोड़ जाती है। मुन्नी की बदनामी और नामी की बदनामी पर बड़ा फर्क है। जुबान फिसलने की दुहाई दी जा सकती है, लेकिन अपने को तृतीय पंक्ति से लाकर प्रथम पंक्ति में खड़ा करना आसान नहीं। अगर किसी ने इसे भाव नहीं दिया तो और बात है, ताव खा गया तो नाहक ही बदनामी हो जाएगी। देखने की घड़ी होगी पलटवार किस जुमले के साथ होता है। अंताक्षरी की दो-चार कड़ी तो हो ही जाएगी। मगर ध्यान रहे यह बानगी है कि देश में चिंतनशील राजनेताओं की कमी होती जा रही है। चिंतित राजनेताओं की नई पौध लहलहा रही है। श्री चव्हाण भी तो कहीं चिंतित नहीं। तराने में कई अफसाने शामिल हो सकते हैं। गिनने वाले दिल्ली में इसे उंगलियों पर गिन रहे होंगे। निनांबे के बाद सौै ही आता ही है। राजनीति के स्वरूप और सरोकार में भारी परिवर्तन आया है। अब विचार की जगह रणनीति और राजनेताओं की जगह पॉलिटिकल मैनेजरों का महत्व बढ़ा है। राजनेता सूत्रों और प्रतीकों की घोर व्यक्तिवादी राजनीति में उलझकर रह गए हैं। अपनी नब्ज टटोलने की बजाए दूसरों का बुखार मापने का चलन बन गया है। झंडू बाम का जुमला अगर आज आम होने जा रहा है तो राजनीति के संकट पर बात करते हुए इस पहलू पर भी गौर करना होगा।
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