रविवार, 31 अक्तूबर 2010

सेंट रावण स्कूलों के चलन

वक्त था, अच्छे स्कूलों, गुरुकुलों के आचार्य खुद आगे होकर बच्चों को मांग कर लाते थे, पढ़ाने के लिए। राजा दशरथ से मुनि राम और लक्ष्मण को मांग कर ले गये थे। भले दिन थे वो, अब के से नहीं। अब राजा दशरथ बालकों को लेकर किसी कायदे के स्कूल में जाते, तो संवाद यूं होता-अपनी इनकम, अपने पिताजी की इनकम, उनके पिताजी की इनकम बताइये। देखिये आप बच्चों के ज्ञान की परीक्षा लें, उनके बारे में पूछें-राजा दशरथ कहते। स्कूल वाले बताते कि बच्चों की इनकम थोड़ी ही होती है, जो उनके बारे में पूछें। और बच्चों के ज्ञान से उन्हे कोई मतलब नहीं है। राजा दशरथ बताते-मेरे बालक सच्चरित्र, कुशाग्र हैं। उससे क्या होता है-स्कूल वाले बताते। उससे क्या होता है, सही बात है। चरित्र देखा नहीं जा सकता, नोट देखे जा सकते हैं। जो दिखता है, उसी की वैल्यू है। कुशाग्रता गिनी नहीं जा सकती, नोट गिने जा सकते हैं। जो गिनने योग्य है, उसी की वैल्यू है। स्कूल इसी फंडे पर काम करते हैं। तब सेंट वशिष्ठ स्कूल होते थे। अब तो सेंट रावण स्कूलों के चलन हैं। एयरकंडीशंड क्लास रूमों में पलने वालों को अगर चौदह साल जंगल जाने का फरमान आ जाये, तो संवाद यूं होंगे-आपको चौदह सालों के जंगल में जाना है।ओ के, जंगलों में एयरकंडीशनर होंगे। नहीं आप बात नहीं समझ रहे हैं, जंगल में एयरकंडीशनर नहीं होते। जंगल में कुछ नहीं होता। पंखे तक नहीं होते। जंगल क्या यूपी में पड़ते हैं जो बिजली पंखे वगैरह नहीं होते। नहीं जंगल यूपी के हों या एमपी के, कहीं भी पंखे नहीं होते। क्या जंगल में पिज्जा, बर्गर, चाऊमीन, मल्टीप्लेक्स, शापिंग माल नहीं होते। नहीं यह सब नहीं होता। ओह, नो जंगल में नहीं जाना। हम वादा तोड़ देंगे।

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