बुधवार, 3 नवंबर 2010
हावी न हो ओबामा प्रभाव
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा अयोध्या के उत्सवी माहौल में भारत आ रहे हैं। यह वह समय है जब भारत आसुरी शक्तियों पर विजय की खुशी में दीवाली मना रहा है। ओबामा ने भी घोषणा की है कि वह मुंबई में स्थानीय बच्चों के साथ दीवाली मनाएंगे। मगर जानकारों की मानें तो भारत दौरे के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत के रक्षा सौदों पर भी नजर होगी। छह विदेशी कंपनियां भारत को 126 बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान बेचने के लिए स्पर्धा कर रही हैं। यह पूरा समझौता करीब 11 अरब डालर का हो सकता है। इन लड़ाकू विमानों के लिए भारत की चयन प्रक्रिया आगे बढ़ रही है और इसमें दो अमेरिकी कंपनियां सक्रिय हैं। चीन को चाहे शत्रु मानें या मित्र, सत्य यह है कि आज भारत का सबसे अधिक आर्थिक व्यापार चीन के साथ है, अमेरिका के साथ नहीं। भारत को सबसे ज्यादा खतरा भी चीन से है। ऐसी स्थिति में देखा जाना चाहिए कि क्या चीन के साथ किसी संघर्ष की स्थिति में अमेरिका भारत का साथ देगा? ओबामा अमेरिका में भारतीय नौजवानों की नौकरियों तथा अमेरिकी संस्थाओं तथा उद्योग द्वारा भारत से आउटसोर्सिंग की भी तीव्र आलोचना करते रहे हैं। उन्हें बताना होगा कि भारत के युवा अपनी मेहनत और कौशल के बल पर अमेरिका में स्थान बनाते हैं और उनका अमेरिका अर्थव्यवस्था में गहरा योगदान रहा है। हमें कृपा नहीं, बराबरी के व्यवहार की अपेक्षा है। यह ध्यान में रखना होगा कि अमेरिका शक्तिशाली के सामने ही झुकता है। वह चीन के बढ़ते प्रभाव से भले ही प्रतिस्पर्धा करते हुए अपना भू-राजनीतिक वर्चस्व विस्तृत करने की कोशिश करे, लेकिन असलियत यह है कि चीन को अमेरिकी बाजार उपलब्ध कराकर उसे आर्थिक महाशक्ति बनाने में अमेरिकी मदद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ओबामा प्रशासन चीन के मानवाधिकार उल्लंघन के तमाम उदाहरण नजरअंदाज करते हुए बीजिंग के एकतंत्रवादी शासकों के सामने झुका हुआ दोस्ती को आतुर दिखता है, उधर भारत के बारे में वह हमसे लाभ प्राप्त करने की स्थिति में ही ध्यान केंद्रित किए हुए है। फिर भी आशा की जानी चाहिए कि विश्व में दो महान लोकतंत्र मिलकर वर्तमान आसुरी शक्तियों के विरुद्ध अभियान छेड़ सकेंगे। ओबामा की भारत यात्रा को इस रूप में नहीं देखा जाना चाहिए कि अमेरिका भारत को क्या देगा? भारत को अपनी लड़ाई अपनी भुजाओं से लडऩे की तैयार रखनी होगी। वैसे भी अमेरिका ने कभी पाकिस्तान प्रायोजित आतंक के मामले में भारत को अपेक्षित सहायता नहीं दी है। गृह सचिव जीके पिल्लई की हेडली के बारे में टिप्पणी से जाहिर है कि अमेरिका ने हेडली के सुराग भारत को समय पर नहीं दिए थे। भारत को अमेरिका के सामने स्पष्ट करना होगा कि अगर आतंकवाद की लड़ाई जीतनी है तो ओबामा को भारत का सहयोग लेना ही होगा। अगर अमेरिका एकतरफा ढंग से केवल अमेरिकी हितों के सीमित दायरे में अलकायदा और तालिबानों के विरुद्ध लड़ाई जारी रखेगा तो वह कभी सफल नहीं हो पाएगा, क्योंकि दुनिया में आतंकवाद से सर्वाधिक पीडि़त देश भारत है, अमेरिका नहीं और भारतीय संदर्भ में आतंकवाद पर चोट किए बिना दुनिया में आतंकवाद को निर्णायक तौर पर समाप्त नहीं किया जा सकता। ओबामा की भारत यात्रा से पहले गिलानी जैसे देशद्रोही तत्वों की सक्रियता और गृहमंत्री द्वारा श्रीनगर में उन मध्यस्थों को ले जाना जो अलगाववादियों के तुष्टीकरण में जुटे हैं, निश्चित रूप से ओबामा प्रभाव कहा जा सकता है। भारत-पाकिस्तान वार्ता में अमेरिका दबाव काफी चर्चा का विषय रहा है। डेमोक्रेट प्रशासन कश्मीर मामले में अलगाववादियों के प्रति नरम रुख अपनाते हुए मुस्लिम देशों में अपनी छवि बेहतर बनाने का प्रयास कर सकता। इस संदर्भ में भारत को स्पष्ट रूप से ओबामा को बताना होगा कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और न केवल वह इस विषय में किसी बाहरी दखल को मंजूर नहीं करेगा, बल्कि भारतीय संसद द्वारा 22 फरवरी 1994 को पारित किए गए उस सर्वसम्मत प्रस्ताव को अमल में लाने का प्रयास करेगा, जिसमें पाकिस्तानी कब्जे में स्थित गुलाम कश्मीर और गिलगित आदि क्षेत्र वापस लेने का संकल्प व्यक्त किया गया है। ::::::::::::::::::::::::::::::::::
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