जीवन से ऊब कर जब कोई आत्महत्या के लिए तालाबों की ओर कदम बढ़ता है तो उसे होश नहीं होता, मगर होश में होता एक शख्स। वह उनकी गतिविधियों पर नजर रखता है और उसकी कोशिश उसे बचाने की रहती है। एक नहीं, दो नहीं,.....सैंकड़ों घरों की दुआएं उसके अमन की कामना करती है और उसी का असर है कि गोताखोर जगदीश खरे का नाम आज विश्वपटल पर धमाके के साथ उभर आया है।
उपराजधानी का नाम रोशन
जगदीश ने अपना नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस में दर्ज कराकर उपराजधानी का नाम रोशन किया है। वर्ष 2013 के 24 वें लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस के विकास सूची में जगदीश खरे का 248 वें नंबर पर नाम अंकित किया गया है। शहर के अंदर व बाहर तालाबों, कुओं व झीलों से शवों को निकालने में जगदीश का नाम पुलिस महकमे में ससम्मान लिया जाता है। उसने शहर के मध्य भाग में स्थित गांधीसागर तालाब से पिछले कुछ वर्षों में 400 से अधिक लोगों की जान बचाई और 1300 शवों को तालाब से खराब हालत में बाहर निकाला। जगदीश के इस काम में उनकी पत्नी जयश्री भी मदद करती है। किसी महिला का शव मिलने पर जयश्री मदद करती है। गांधीसागर में शव के दिखाई देने पर गणेशपेठ थाने की पुलिस महानगरपालिका के गोताखोर का इंतजार करने के बजाय जगदीश खरे को याद करता है। जगदीश खरे के पास कमाई का दूसरा कोई साधन नहीं है।
कभी मांगता नहीं
शवों को निकालने के बाद पुलिस या मृतक के परिजनों से जो स्वेच्छा से मिल जाता है, वह जगदीश रख लेता है। कभी मांगता नहीं है। लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस ने जगदीश के कई प्रसंगों में से एक को प्रमुखता के साथ उकेरा है। वर्ष 2013 के प्रकाशन में लिखा है कि एक व्यक्ति ने तालाब में छलांग लगाने से पहले सुसाइड नोट में जगदीश का शुक्रिया अदा करते हुए लिखा था कि मुझे पूरी उम्मीद है कि मौत के बाद मेरा शव जगदीश की मदद से घरवालों तक पुलिस पहुंचा देगी। इस शख्स ने गांधीसागर से कितने शव निकाले, कितने लोगों की जान बचाई है, इसका बकायदा रिकार्ड नोटबुक में कर रखा है। कोलकाता में टेलीग्राफ की ओर से भी जगदीश का भव्य स्वागत किया जा चुका है।
विडंबनाओं का मारा
जगदीश फिर भी विडंबनाओं का मारा है। इसे अपना नाम छोड़कर कुछ और लिखना नहीं आता। पत्नी 10वीं पास जरूर है। जगदीश के नाम इस कीर्तिमान पर बधाई देने वालों में से कुछ ने चुटकी भी ली कि यार, मरने के बाद भी अगर तेरा हाथ लग गया तो बंदे का नाम रिकार्ड में दर्ज हो जाएगा, क्योंकि हर वर्ष इसका नवीनीकरण भी तो होगा।
मानधन देना बंद किया मनपा ने
नागपुर महानगरपालिका गोताखोर जगदीश खरे को जो मानधन देती थी, उसी पर वह पत्नी जयश्री खरे के साथ जीवन का गुजर बसर करता था। अब उसने भी मानधन देना बंद कर दिया है। जगदीश को फिर भी शिकवा नहीं। कहता है नसीब में होगा, तो मिल ही जाएगा। हां, महंगाई के इस दौर में तकलीफ तो है ही, मगर हाथ फैलाने की आदत जो नहीं। लिम्का बुक का यह कद्र हमारे लिए धरोहर है।
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