बुधवार, 2 अक्टूबर 2013

बदलाव का खास मतलब

एक प्रधानमंत्री के लिए इससे अजीबोगरीब स्थिति और क्या हो सकती है कि विपक्ष तो विपक्ष, अपनी पार्टी भी उसके निर्णय पर सवाल खड़े कर रही हो। शायद इस स्थिति को भांपकर ही यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा है कि पूरी पार्टी मनमोहन सिंह के साथ खड़ी है। तिरुवनंतपुरम में दिए गए अपने एक भाषण में उन्होंने डॉ. सिंह के कामकाज की तारीफ करते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में जारी हुई स्कीमों से देश के लाखों जरूरतमंद लोगों को फायदा पहुंचा है। असल में कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव में अपना एक नया चेहरा लेकर जाना चाहती है। लेकिन उसकी दुविधा यह है कि परिवर्तन की प्रक्रिया क्या हो? इतना तय है कि मनमोहन सिंह के बाद राहुल गांधी को नेतृत्व संभालना है, मगर पार्टी यह भी नहीं चाहती कि राहुल चुपचाप अपना काम संभाल लें। पार्टी राहुल को कुछ इस तरह प्रोजेक्ट करना चाहती है कि इस बदलाव का एक खास मतलब हो। वह सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, एक नई नीति और प्रोग्राम का आगमन लगे। इस तरह लोगों को नएपन का अहसास हो और पार्टी मनमोहन सरकार की तमाम कमियों और विफलताओं से पल्ला झाड़कर चुनाव में उतर सके। शायद इसी सोच के तहत राहुल गांधी ने सरकार के अध्यादेश को खारिज किया। यह दांव इस लिहाज से तो कारगर रहा कि दागियों को खुलेआम बचाने के कलंक से कांग्रेस खुद को बचा ले गई। पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की साख इस कदर कभी दांव पर नहीं लगी थी। इस दूसरे कार्यकाल के दौरान उनके कामकाज पर लगातार उंगलियां उठीं। उन्हें कमजोर और रिमोट कंट्रोल से चलने वाला पीएम बताया गया। लेकिन ये सारी बातें विपक्ष ने कही थीं।  सवाल अपनी जगह बचा ही हुआ है कि क्या अध्यादेश को लेकर पार्टी और सरकार में कोई संवाद ही नहीं था? और अगर अध्यादेश कांग्रेस पार्टी की समझ के तहत ही लाया गया है तो राहुल को इस बारे में जानकारी कैसे नहीं थी? राहुल की सार्वजनिक प्रतिक्रिया का तर्क चाहे जो भी क्यों न हो, व्यक्तिगत छवि या चुनावी लाभ के लिए प्रधानमंत्री की साख को दांव पर लगाना समझदारी नहीं कही जाएगी।
-------------------------------------------


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें