नागपुर और आस-पास के घने वन में पाए जानेवाले बाघों की संख्या को ध्यान में रखते हुए नागपुर को टाइगर कॅपिटल बनाने की तैयारी जोरों पर है। नागपुर वह स्थान है जहां से सैलानी अपनी पसंद के किसी भी 8 बाघ परियोजनाओं तक पहुंच सकते हैं। अवैध शिकार के अलावा छोटी-मोटी खेती कर जंगल किनारे गुजर-बसर करने वाले ग्रामीण भी बाघ के उस समय तात्कालिक दुश्मन बन जाते हैं, जब उनके मवेशी (गाय-भैंस-बकरी आदि) कोई भूखा बाघ उठाकर ले जाता है। वे लोग बाघ को खत्म करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। केंद्र सरकार ने ऐसे मामलों में किसानों को मवेशियों के नुकसान की नगद भरपाई की व्यवस्था कर रखी है, फिर भी भी बाघों और इंसानों के बीच का यह द्वंद्व खत्म नहीं हो पा रहा है। सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि 1973 में इंदिरा गांधी द्वारा व्यक्तिगत रुचि लेकर प्रारंभ किए गए प्रोजेक्ट टाइगर (राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण), प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला राष्ट्रीय वन्य प्राणी बोर्ड एवं केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय मिलकर भी संयुक्त रूप से बाघ संरक्षण के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं कर पा रहे हैं? प्रकृति विनाश बनाम मानव विकास, यह पुरानी लड़ाई जनसंख्या वृद्धि के चलते और अधिक विकराल रूप ले रही है। बाघ बेवजह उसमें पिसकर दम तोड़ रहा है। विश्व वन्यजीव सप्ताह के तहत इस बार तेजी से गुम होते जा रहे बाघों की रक्षा के लिए कुछ संस्थाओं ने कदम आगे बढ़ाया है। इनकी सुरक्षा को लेकर कई गैर सरकारी संगठनों ने भी चिंता जाहिर की है। गोंड मोहाड़ी पलसगांव रेज में शिकार हुए बाघों के शिकार के तरीकों को लेकर इन निजी संस्थाओं ने सवाल उठाए हैं। इन संस्थाओं के मुताबिक बाघों के शिकार के मामले में राज्य सरकार ने सीबीआई को जांच का जिम्मा सौंपा है। सीबीआई को स्थानीय शिकारियों के अलावा शिकार के लिए कुख्यात बहेलिया समुदाय के लोगों की संलिप्तता की जांच का भी सुझाव दिया गया है। गोंड मोहाड़ी के बाघों को न्याय देने की मांग को लेकर उमरेड़ की डब्लूएलसीडीसी, शंकरपुर के तरुण पर्यावरणवादी मंडल, मूल के संजीवन पर्यावरण संस्था व नागभीड़ की जेप पर्यावरण संस्था ने गोंड मोहाड़ी शिकार मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग के समर्थन में सांसदों, विधायकों व नगर सेवकों से निवेदन करने की मुहिम छेड़ी है। मुहिम के तहत ये संस्थाएं सोशल नेटवर्किंग साइट का भी सहारा लेंगी। फेसबुक के माध्यम से युवाओं को जोडऩे की पहल की जाएगी। इन संस्थाओं ने सीबीआई का ध्यान इस ओर आकृष्ट करने की कोशिश की है कि गोंड मोहाड़ी शिकार के लिए उपयोग में लाए गए बड़े शिकंजे केवल अंतरराष्टर्रीय शिकार गिरोह बहेलियाओं द्वारा ही उपयोग में लाई जाती है। सीबीआई ने जिन स्थानीय आरोपियों की धरपकड़ की है, उनके पास केवल छोटे शिकंजे ही पाए जाते हैं।
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