बॉस के लिए कुछ भी कर सकते हैं, कुछ भी...
पत्रकारिता का उद्देश्य है आम से खास तक और खास से आम तक यानि जन जन तक सूचना पहुचाना और आवाम की आवाज़ बनना पर शायद इन आवाज़ों में खुद की हीं लड़ाई लड़ने का साहस खत्म सा हो गया है। इस पेशे में ऐसे कई है जो जी तो रहे है घुट घुट कर पर हिम्मत जुटे तो जुटे कैसे आखिरकार अकेला चना भांड नहीं फोड़ सकता। आखिर मीडिया में चमचागिरी और चापलूसी नाम की भी कोई चीज़ है जिसे सलाम करने वाले कभी हमारी तरह शोषित नहीं होते। उन्हें तो बस बॉस को पैर छूकर प्रणाम भईया, गुड मॉर्निंग बॉस या फिर केबिन में घुंसकर बटरिंग करने का डोज़ देना होता है जिसके करने मात्र से हीं संस्थान में उनका डंका बजता है। देखा जाए तो ऐसे लोग अपनी नौकरी बचाए रखने के लिए दलाली तक करने पर अमादा हो जाते है जिसमें वो बॉस के लिए कुछ भी कर सकते हैं, कुछ भी...। मीडिया संस्थानों को अपने परिश्रम और कार्यकुशलता से चलाने वाले लोंगो के साथ हो रहे शोषण के लिए वो कौन लोग जिम्मेदार हैं इसका पता जरुर लगना चाहिए। इस विषय पर सभी मीडिया संस्थानों में एक गुप्त जांच पड़ताल टीम भी होनी चाहिए जो चमचागिरी और दलाली जैसी गतिविधियों पर नज़र रख सके ताकि ऑफिस के हित में काम करने वाला कोई भी कर्मचारी खुद को कभी ठगा सा महसूस न करे क्योंकि इनसे गुणवत्ता और काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है।
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