आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ. सुषमा जी ने प्रधानमंत्री की तरफ निशाना साधते हुए मन को मोहने वाले मनमोहन सिंह से कुछ शायराना अंदाज़ में मुखातिब हुईं....और .और एक सवालिया शेर मनमोहन की तरफ उछल दिया. मजमून कुछ इस तरह का था "तू इधर-उधर की ना बात कर, बता की काफिला कहा लुटा"...और बहस का सिलसिला आगे बढ़ चला...एक-एक वक्तव्यों पर हमारे टीवी चैनल ब्रेकिंग न्यूज़ की बड़ी बड़ी प्लेट चला रहे थे. हर वक्तव्य पर मीडिया कुछ इस तरह रियेक्ट कर रही थी जैसे आरोप-प्रत्यारोप के बदले संसद में मिसाइल चल रहे हों.
खैर, ये तो मीडिया वालों की मजबूरी है. टीआरपी लानी है, चैनल के मालिक को दिखाना है की जी हम नंबर 1 हैं. खैर बहस का सिलसिला आगे बढ़ता गया और बारी आई देश के सबसे भोले भाले सरदार की, जिन्हें कुछ पता नहीं होता. आज वो भी कुछ रंग में थे. मिजाज़ उनका भी शायराना था. सुषमा जी तरफ मुखातिब होते हुए उन्होंने ने भी कुछ इस तरह एक शेर दगा... माना की तेरी दीद के काबिल नहीं हूँ मैं....पर तू मेरा शौख देख, मेरा इंतज़ार तो कर... इकबाल की लिखी ये पंक्तियां शायद मनमोहन जी को किसी ने लिख कर दिया होगा. खूब तालियाँ बजी. हर खबरिया चैनल में जैसे भूचाल आ गया. भागम दौड़ मच गई, संपादक से ले कर ट्रेनी तक सरदार की पढ़ी इस शेर पर अपने विचार और उदगार व्यक्त करने लगे.
देश की भोली भाली जनता को इस शेर के मायने समझाने लगे. भोली-भली जनता टीवी से नज़र गड़ाए टीवी पर ज्ञान बांटते तथाकथित पत्रकारों के ज्ञान सुनती रही और टीवी वालों को टीआरपी मिलती रही. पूरे दिन हंगामा चलता रहा पर किसी भी देशभक्त चैनल को ये याद नहीं आया कि आज शहीद दिवस है और आज के ही दिन आज़ादी के दीवाने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने देश पर अपनी जान कुर्बान कर दी थी, लेकिन आज उसी देश में अपने को पत्रकार और विद्वान कहलाने वाले बेशर्मी की हदें पार कर रहे थे. जहां बेहूदे शेरो-शायरी के लिए उनके पास वक़्त ही वक़्त था, वहीं आज़ादी के दीवानों को श्रद्धांजलि देने के लिए उन के पास चंद लम्हें भी नहीं थे. शर्म आती है इस देश के नेताओं और चमचे पत्रकारों पर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें